जुस्तजु तेरे प्यार की तेरी नज़र का सूरूर। तुझे माँगना खुदा से हर दुआ में मेरे हुज़ूर।
बात दिल्लागी की थी या फिर दिल लगाने की अदा। सजदा झुक के किया या फिर झुका के नज़रें सदा।
उन लमहों की यादें तेरे जलवों का नशा। या कोई चिलमन के पीछे उन शोख़ नज़रों की अदा।
तुम ही तुम रही मेरी आँखों का नूर हर लम्हा। वो पलकें उठा के फिर गिराने का फ़लसफ़ा।
तेरे ख़ुतुत तेरे अल्फ़ाज़ तेरी शोख़ नज़रों का ख़ज़ाना। बस यही रह गया मेरे पास तेरे इश्क़ का नज़राना।
तुम रूखसत हुई ज़माना हो गया। मैं अपने ही घर में बेग़ाना हो गया।
आज भी जब शोख़ नज़रें लिए मेरी गलियों से कोई गुज़र जाता है।
तेरा सुर्ख़ जोड़े में सज कर किसी और के साथ जाना याद आता है।